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हिंदी भाषा: छंद पर स्टडी नोट्स


छंद:- निश्चित चरण, वर्ण, मात्रा, गति, यति, तुक और गण आदि के द्वारा नियोजित पद्य रचना को छंद कहते हैं। छंद के छह अंग होते हैं:-

1)- चरण या पाद

(क) समचरण      (ख) विषम चरण

2)- वर्ण और मात्रा

(क) लघु या ह्रस्व      (ख) गुरु या दीर्घ

3)- यति

4)- गति

5)- तुक

6)- गण

1. चरण या पाद:- चरण को पाद भी कहते हैं। एक छंद में प्राय: चार चरण होते हैं। चरण छंद का चौथा हिस्सा होता है। प्रत्येक पाद में वर्णों या मात्राओं की संख्या निश्चित होती है। चरण दो प्रकार के होते हैं:-

क)- समचरण:- दुसरे और चौथे चरण को समचरण कहते हैं।

ख)- विषमचरण:- पहले और तीसरे चरण को विषमचरण कहते हैं।

2. वर्ण और मात्रा – छंद के चरणों को वर्णों या मात्राओं की गणनानुसार व्यवस्थित किया जाता है। छंद में प्रयुक्त अक्षर को वर्ण कहते हैं। मात्रा की दृष्टी से वर्ण दो प्रकार के होते है:-

क)- लघु या ह्रस्व

ख)- गुरु या दीर्घ

वर्ण के बोलने में जो समय लगता है, उसे हम मात्रा कहते हैं अर्थात किसी वर्ण के उच्चारण काल की अवधि को मात्रा कहते हैं।

3. यति – इसे विराम और विश्राम भी कहते हैं। छंद का पाठ करते समय कुछ देर के लिए जहाँ रुकना पड़ता है, उसे ही यति कहते हैं। इसके लिए कुछ चिन्ह निश्चित होते हैं।

जैसे:- ( , ), ( l ), ( l l ), ( ? ), ( ! ) आदि।

4. गति:- किसी छंद को पढ़ते समय हम एक प्रवाह का अनुभव करते हैं, उसे गति या लय कहते हैं| छंद में पदांत के अक्षरों की समानता को तुक कहते हैं। ईद दृष्टी से छंद के दो भेद हैं:-

क):- तुकान्त

ख):- अतुकान्त

5. तुक:- इसमें चरण के अंत मर वर्णों की आवृत्ति होती है, तुकान्त कविता कहते है।

उदाहरण:-

” हमको बहुत है भाती हिंदी।
हमको बहुत है प्यारी हिंदी।”

चरण के अंत में वर्ण की आवृत्ति न हो उसे अतुकांत कविता कहते हैं। नई कविता प्रायः अतुकांत होती है।

उदाहरण:-

“काव्य सर्जक हूँ
प्रेरक तत्वों के अभाव में
लेखनी अटक गई हैं
काव्य-सृजन हेतु
तलाश रहा हूँ उपादान।”

5. गण:- वर्णिक छंदों की गणना ‘गण’ के क्रमानुसार की जाती है। तीन वर्णों का एक गन होता है। गणों की संख्या आठ होती है।

जैसे:-

यगण, तगण, लगण, रगण, जगण, भगण, नगण और सगण।

छंद चार प्रकार के होते हैं:-

1)- मात्रिक छंद

2)- वर्णिक छंद

3)- वर्णिक वृत्त

4)- मुक्त छंद

1)- मात्रिक छंद- जिन छंदों की रचना मात्राओं की गणना के आधार पर होती है, उन्हें मात्रिक छंद कहते हैं। जैसे- दोहा, चौपाई, रोला आदि। मात्रिक छंद तीन प्रकार के होते हैं:-

a)- सममात्रिक छंद

b)- अर्धमात्रिक छंद

c)- विषम मात्रिक छंद

a)- सममात्रिक छंद -जहाँ छंदों में सभी चरण समान होते हैं, उसे सममात्रिक छंद कहते हैं। इसमें 11-11 मात्राएँ हैं।

उदाहरण:-

“मुझे नहीं ज्ञात कि मैं कहाँ हूँ
प्रभो! यहाँ हूँ अथवा वहाँ हूँ।”

b)- अर्धमात्रिक छंद -जिसमे पहला और तीसरा चरण एक समान हो तथा दूसरा और चौथा चरण उनसे भिन्न हों किन्तु आपस में समान हों, उसे अर्धमात्रिक छंद कहते हैं। जैसे-दोहा छंद।

c)- विषम मात्रिक छंद:- जहाँ चरणों में दो चरण अधिक समान न हों , उसे विषम मात्रिक छंद कहते हैं। ऐसे छंद प्रचलन में कम हैं। जैसे- छप्पय छंद।

2. वर्णिक छंद – इसमें वर्णों की गणना होती है इसमें चार सामान चरण होतेहैं और प्रत्येक चरण में आने वाले लघु गुरु का क्रम सुनिश्चित होता है जैसे मत्तगयंद सवैया

3. वार्णिक छंद – जिन छंदों की रचना वर्णों की गणना के आधार पर होती है, उसे वार्णिक छंद कहते हैं। जैसे- दुर्मिल सवैया।

4. मुक्त छंद – चरणों की अनियमित, असमान, स्वछंद गति और भाव के अनुकूल यति विधान ही मुक्त छंद की विशेषता है। इसे रबर या केंचुआ छंद भी कहते हैं।

कुछ प्रमुख छन्दों के उदहारण:-

दोहा छंद

यह अर्धसममात्रिक छंद है। यह सोरठा छंद के विपरीत होता है। इसमें प्रथम और तृतीय चरण में 13-13 तथा द्वितीय और चतुर्थ चरण में11-11 मात्राएँ होती है। चरण के अंत में लघु ( l ) होना आवश्यक है।

उदाहरण:-

“कारज धीरे होत है, काहे होत अधीर।
समय पाय तरुवर फरै, केतक सींचो नीर ।।”

सोरठा छंद – यह अर्धसममात्रिक छंद है। यह दोहा छंद के विपरीत होता है। इसमें प्रथम और तृतीय चरण में 11-11 तथा द्वितीय और चतुर्थ चरण में 13-13 मात्राएँ होती हैं।

उदाहरण:-

“कहै जु पावै कौन , विद्या धन उद्दम बिना।
ज्यों पंखे की पौन, बिना डुलाए ना मिलें।”

रोला छंद – यह एक मात्रिक छंद है। इसमें चार चरण होते हैं। इसके प्रत्येक चरण में 11 और 13 के क्रम से 24 मात्राएँ होती हैं।

उदाहरण:-

“नीलाम्बर परिधान, हरित पट पर सुन्दर है।
सूर्य चन्द्र युग-मुकुट मेखला रत्नाकर है।
नदियाँ प्रेम-प्रवाह, फूल तारे मंडन है।
बंदी जन खग-वृन्द, शेष फन सिंहासन है।”

गीतिका छंद – यह एक मात्रिक छंद है। इसके चार चरण होते है। प्रत्येक चरण में 14 और 12 यति से 26 मात्राएँ होती है। अंत में क्रमश: लघु-गुरु होता है।

उदाहरण:-

“हे प्रभो आनंददाता ज्ञान हमको दीजिये।
शीघ्र सारे दुर्गुणों को दूर हमसे कीजिये।
लीजिए हमको शरण में, हम सदाचारी बने।
ब्रह्मचारी, धर्मरक्षक वीर व्रतधारी बनें।”

हरगीतिका छंद – यह एक मात्रिक छंद है। इसमें चार चरण होते हैं। इस छंद के प्रत्येक चरण में16 और 12 के विराम से कुल 28 मात्राएँ होती हैं।

उदाहरण:-

“मेरे इस जीवन की है तू, सरस साधना कविता।
मेरे तरु की तू कुसुमित , प्रिय कल्पना लतिका।
मधुमय मेरे जीवन की प्रिय,है तू कल कामिनी।
मेरे कुंज कुटीर द्वार की, कोमल चरण-गामिनी।”

उल्लाला छंद – यह एक मात्रिक छंद है। इसके प्रत्येक चरण में15 और 13 की यति से कुल 28 मात्राएँ होती हैं।

उदाहरण:-

“करते अभिषेक पयोद हैं, बलिहारी इस वेश की।
हे मातृभूमि! तू सत्य ही, सगुण-मूर्ति सर्वेश की।”

चौपाई छंद – यह एक मात्रिक छंद है। इसमें चार चरण होते हैं। प्रत्येक चरण में16 मात्राएँ होती है। चरण के अंत में गुरु (S ) और लघु(l ) नही होना चाहिए, पर्दों लघु ( ll ) या दो गुरु (SS) हो सकते हैं।

उदाहरण:-

“इहि विधि राम सबहिं समुझावा
गुरु पद पदुम हरषि सिर नावा।”

बरवै (विषम) छंद – इसमें प्रथम और तृतीय चरणों में 12 तथा द्वितीय और चतुर्थ चरण में 7(सम) मात्राएँ होती हैं।

उदाहरण:-

“चम्पक हरवा अंग मिलि अधिक सुहाय।
जानि परै सिय हियरे, जब कुम्हिलाय।।”

छप्पय छंद – इस छंद में 6 चरण होते हैं। प्रथम चार चरण रोला छंद के होते हैं तथा अंतिम 2 उल्लाला के होते हैं।

उदाहरण:-

“नीलाम्बर परिधान हरित पट पर सुन्दर है।
सूर्य-चन्द्र युग मुकुट, मेखला रत्नाकर है।
नदिया प्रेम-प्रवाह, फूल -तो मंडन है।
बंदी जन खग-वृन्द, शेषफन सिंहासन है।
करते अभिषेक पयोद है, बलिहारी इस वेश की।
हे मातृभूमि! तू सत्य ही,सगुण मूर्ति सर्वेश की।।”

कवित्त छंद – यह वार्णिक सम छंद है। इसके प्रत्येक चरण में 31 वर्ण होते हैं तथा अंत में तीन लघु (l l l) होते हैं। 16, 17 वें वर्ण पर विराम (यति) होता है।

उदाहरण:-

“मेजे मन भावन के भावन के ऊधव के आवन की
सुधि ब्रज गाँवन में पावन जबै लगीं।
कहै रत्नाकर सु ग्वालिन की झौर-झौर
दौरि-दौरि नन्द पौरि,आवन सबै लगीं।
उझकि-उझकि पद-कंजनी के पंजनी पै,
पेखि-पेखि पाती,छाती छोहन सबै लगीं।
हमको लिख्यौ है कहा,हमको लिख्यौ है कहा,
हमको लिख्यौ है कहा,पूछ्न सबै लगी।।”

द्रुत विलंबित छंद – प्रत्येक चरण में 12 वर्ण, एक नगण, दो भगण तथा एक सगण होते है।

उदाहरण:-

“दिवस का अवसान समीप था,
गगन था कुछ लोहित हो चला।
तरु शिखा पर थी अब राजती,
कमलिनी कुल-वल्लभ की प्रभा।।”

मालिनी छंद – इस वार्णिक सम वृत्त छंद मे 15 वर्ण,दो तगण,एक मगण तथा दो यगण होते हैं। आठ एवं सात वर्ण एवं विराम होता है।

उदाहरण:-

“प्रभुदित मथुरा के मानवों को बना के,
सकुशल रह के औ विध्न बाधा बचाके।
निज प्रिय सूत दोनों , साथ ले के सुखी हो,
जिस दिन पलटेंगे, गेह स्वामी हमारे।।”

मंदाक्रांता छंद – इसमें प्रत्येक चरण में 17 वर्ण होते हैं, एक भगण, एक नगण, दो तगण तथा दो गुरु होते है।5, 6 तथा 7वें वर्ण पर यति(विराम) होता है।

उदाहरण:-

“कोई क्लांता पथिक ललना चेतना शून्य होक़े,
तेरे जैसे पवन में , सर्वथा शान्ति पावे।
तो तू हो के सदय मन, जा उसे शान्ति देना,
ले के गोदी सलिल उसका, प्रेम से तू सुखाना।।”

धन्यवाद

सीजीएस कोचिंग टीम (CGS Coaching Team)

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